नई दिल्ली, 08 नवंबर । सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान बेंच आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा समाप्त करने की मांग पर फैसला सुनाएगी। बेंच ने एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी को सुनवाई के दौरान कहा था कि इसकी स्थापना मुस्लिमों के लिए की गई थी। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा था कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि मुस्लिमों को मिलने वाले अल्पसंख्यक अधिकार खतरे में है। उन्होंने कहा था कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को कोई खतरा नहीं है और सभी नागरिक बराबर हैं।
इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें यह भी समझना होगा कि कोई अल्पसंख्यक संस्थान भी राष्ट्रीय महत्व का हो सकता है और संसद उसे राष्ट्रीय महत्व का दर्जा दे सकती है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा गया था कि आखिर वो संसद की ओर से किए गए संशोधन का समर्थन कैसे नहीं कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस ने मेहता से कहा था कि संसद अविभाज्य और निरंतर इकाई है और ऐसे में ये कैसे हो सकता है कि सॉलिसिटर जनरल कहें कि वे संसद के संशोधन के साथ नहीं हैं। मेहता ने कहा था कि अभी सात जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है और इस दौरान वे जवाब दे रहे हैं। ऐसे में वह इस बात का अधिकार रखते हैं कि वो हाईकोर्ट की ओर से रखे गए रुख के साथ खड़े हों। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यह एक बिल्कुल जुदा मामला है जब सॉलिसिटर जनरल कहते हैं कि संसद में जो संशोधन किया गया है वो उसके साथ खड़े नहीं हैं। क्या केंद्र का कोई अंग ऐसा कह सकता है कि वो संसद में हुए संशोधन के साथ नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी शैक्षणिक संस्थान को केवल इसलिए अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने से नहीं रोका जा सकता कि वह एक कानून के द्वारा रेगुलेट होता है। विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि भारत में विविधता है जो दुनिया के किसी भी महाद्वीप से कहीं अधिक है। अगर उत्तर प्रदेश में भी आएं तो यहां विविधता दिखेगी। यही वह चीज है जिसे हम संरक्षित करना चाहते हैं। अलीगढ़ विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त उत्कृष्ट संस्थान है। उन्होंने कहा था कि अजीज बाशा के फैसले में कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 30 को लेकर काफी संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया। एक अल्पसंख्यक संस्थान को संचालित करने का अधिकार उसकी स्थापना के अधिकार से आता है। एएमयू एक्ट को लाने के पीछे उद्देश्य मुस्लिमों को शिक्षित करना था।
उल्लेखनीय है कि 12 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सात जजों की संविधान बेंच को रेफर कर दिया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश दिया था। 2019 में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दिया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। सनद रहे पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने जामिया यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने की वकालत की थी। इससे पहले 29 अगस्त, 2011 को यूपीए सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस के फैसले पर सहमति जताई थी। मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने ताजा हलफनामे में कहा है कि पुराने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजीश बाशा केस में दिए गए फैसले को नजरंदाज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है, क्योंकि इसे ब्रिटिश सरकार ने स्थापित किया था, ना कि मुस्लिम समुदाय ने।