नई दिल्ली, 28 नवम्बर । थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए ग्रे जोन ऑपरेशन की जटिलताओं, दो मोर्चों की चुनौती और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा के लिए जमीनी, समुद्री और हवाई रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया है। महू (मध्य प्रदेश) के आर्मी वॉर कॉलेज में गुरुवार को दो दिवसीय सेमिनार के समापन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब हमारे विरोधी हाइब्रिड रणनीतियों को तेजी से अपना रहे हैं तो भारतीय सेना को भी बहुआयामी खतरों का मुकाबला करने वाले सिद्धांतों को अपनाना चाहिए।
‘हालिया संघर्षों और युद्ध में प्रौद्योगिकी समावेशन के मद्देनजर भारतीय सेना के लिए अनुकूली सिद्धांतों/संचालन दर्शन की आवश्यकता’ विषय पर भू-रणनीतिक मामलों, भू-राजनीतिक मामलों, सशस्त्र बलों, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और उद्योगों के क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने आधुनिक युद्ध वातावरण में सशस्त्र बलों के विभिन्न परिचालन, रसद पहलुओं और क्षमता विकास पर विस्तृत और गहन दृष्टिकोण प्रकट किये। सेना प्रमुख जनरल द्विवेदी ने अपने भाषण के दौरान रणनीतिक और परिचालन मुद्दों के गहन विश्लेषण की सराहना करते हुए युद्ध की बदलती प्रकृति के जवाब में परिवर्तन और अनुकूलन की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आधुनिक संघर्ष गैर सैन्य साधनों के माध्यम से राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने पर अधिक केंद्रित हैं, जिसमें सैन्य रणनीतियों में नई तकनीकी प्रगति शामिल है।
सेनाध्यक्ष ने समकालीन युद्ध को प्रतिस्पर्धा, संकट, टकराव, संघर्ष और मुकाबला के रूप में वर्णित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्ध के नए रूप उभर रहे हैं, फिर भी पुरानी पीढ़ियां प्रासंगिक बनी हुई हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए सीओएएस ने मुख्य बातों की पहचान की, जिसमें संयुक्त शस्त्र संचालन का महत्व, असममित रणनीति का लाभ उठाना और नागरिक-सैन्य एकीकरण को बढ़ाना है। ये सबक सैन्य नेताओं के लिए व्यापक ढांचे के भीतर निर्बाध रूप से काम करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। उन्होंने इस एकीकृत दृष्टिकोण को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम के रूप में चल रहे परिवर्तन के दशक (2023-2032) की ओर भी इशारा किया।
राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों को संबोधित करते हुए जनरल द्विवेदी ने इस बात पर जोर दिया कि सैन्य सिद्धांतों को लचीला होना चाहिए, जिससे व्यक्तिगत निर्णय को बढ़ावा देते हुए प्रयासों की एकता को सक्षम किया जा सके। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सटीक युद्ध और साइबर क्षमताओं सहित प्रौद्योगिकी को बहु-डोमेन संचालन का समर्थन करने के लिए एकीकृत किया जाना चाहिए। उन्होंने सैन्य नेताओं के लिए अग्रिम मोर्चे पर तकनीकी चुनौतियों के प्रति शीघ्रता से अनुकूलन करने तथा नई तकनीकों के विकास और तैनाती में बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। सीओएएस ने अत्यधिक सैद्धांतिक कठोरता में कमी लाने की भी वकालत की, विशेष रूप से सामरिक स्तर पर विकेंद्रीकरण और तेजी से निर्णय लेने का आग्रह किया।