नई दिल्ली – क्या आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों में तनाव है? लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सबसे पहले संघ से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में रतन शारदा का लेख आया। इसमें बीजेपी के लिए साफ संदेश हैं। इन संदेशों के संकेतों पर अभी बात हो ही रही थी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों ने स्थिति बहुत हद तक स्पष्ट कर दी। फिर संघ की मुस्लिम शाखा राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के प्रमुख इंद्रेश कुमार ने इस चर्चा को अगले स्तर पर पहुंचा दिया। उन्होंने इतना तगड़ा कटाक्ष किया कि अगले ही दिन सफाई देने पड़ गई। संघ से जुड़े विचारक रतन शारदा हों या फिर संघ प्रमुख मोहन भागवत या राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार, सभी की टिप्पणियों में एक कॉमन फीलिंग है- अहंकार। सभी ने येन केन प्रकारेण यही बताने और जताने की कोशिश की है कि लोकसभा चुनाव में लगे झटके के पीछे बेजीपी नेतृत्व का अहंकार सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। बाकी संघ प्रमुख ने कई तरह के सुझाव दिए। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीति में विरोधी (दुश्मन) नहीं प्रतिपक्षी (प्रतिस्पर्धी) होते हैं। तो अगला सवाल यह उठता है कि क्या आरएसएस बीजेपी नेतृत्व को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकता है?