रणजी ट्रॉफी 2022 को लेकर बड़ा ऐलान, लीग फेज की इस दिन से होगी शुरुआत

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रणजी ट्रॉफी का लीग चरण 16 फरवरी से पांच मार्च तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई द्वारा तैयार संशोधित कार्यक्रम के अनुसार आयोजित किया जाएगा। इससे भारत में लाल गेंद प्रारूप के घरेलू क्रिकेट की दो साल बाद वापसी होगी। देश में कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण बीसीसीआई को इस शीर्ष घरेलू प्रतियोगिता को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। पहले के कार्यक्रम के मुताबिक इसे 13 जनवरी से खेला जाना था। महामारी के कारण पिछले सत्र में टूर्नामेंट को रद्द कर दिया गया था।

टूर्नामेंट में 38 टीम भाग लेंगी और इसके मैच सभवत: अहमदाबाद, कोलकाता, त्रिवेंद्रम, कटक, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद और राजकोट में खेले जायेंगे। हालांकि, इसके प्रारूप में बदलाव किया गया है और इसमें चार टीम के आठ ग्रुप होंगे, जिसमें प्लेट समूह में छह टीम होंगी। जो टीमें अगले चरण में आगे बढ़ने में विफल रहती हैं, वे मूल प्रारूप में पांच की तुलना में इस बार केवल तीन मैच खेलेंगी, जिससे खिलाड़ियों की मैच फीस प्रभावित होगी। मार्च 2020 में रणजी ट्रॉफी फाइनल के बाद से भारत में लाल गेंद प्रारूप से राष्ट्रीय स्तर का कोई भी घरेलू मुकाबला नहीं खेला गया है

पिछले सत्र में रणजी ट्रॉफी रद्द होने के कारण मुआवजा पाने वाले घरेलू क्रिकेटरों ने उस समय प्रसन्नता व्यक्त की थी जब बीसीसीआई सचिव जय शाह ने बीते दिनों घोषणा की थी कि इस टूर्नामेंट का आयोजन दो चरणों में होगा। इसके नॉकआउट चरण के मैच जून में खेले जायेंगे। अपने समृद्ध इतिहास में पहली बार रद्द हुई रणजी ट्रॉफी खिलाड़ियों, मैच अधिकारियों और मैदान कर्मियों की वित्तीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसे भारतीय क्रिकेट का रीढ़ भी माना जाता है। 

लाल गेंद क्रिकेट की कमी खिलाड़ियों को निराश कर रही थी क्योंकि उनमें से कुछ ब्रिटेन में क्लब क्रिकेट खेलने के लिए इस अनिश्चित अवधि का उपयोग कर रहे थे। सौराष्ट्र के स्टार बल्लेबाज शेल्डन जैक्सन ने घोषणा के बाद पिछले हफ्ते पीटीआई से कहा था, ”देश का हर घरेलू क्रिकेटर लीग चरण या नॉकआउट के बारे में नहीं सोच रहा है, कोई बबल (जैव-सुरक्षित माहौल) या कोविड-19 के बारे में नहीं सोच रहा है, वे सिर्फ खेलना चाहते हैं।” उन्होंने कहा, ”अभी खेलना ही सब कुछ है और बाकी सभी चीजों का पालन किया जाएगा।” महामारी के बीच प्रतियोगिता बीसीसीआई के लिए एक बड़ी लॉजिस्टिक चुनौती भी है। सत्र में पहले सफेद गेंद प्रतियोगिताओं के दौरान बायो-बबल पर्याप्त सख्त नहीं थे और टूर्नामेंट के सुचारू संचालन के लिए अधिक सतर्कता की आवश्यकता होगी।

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