हम कितनें मासूम हैं..जो कोरोना और लॉकडाउन के खबर से ही खुद को समेट लेते हैं। लॉक डाउन की खबर सुनते ही दुकानदार गुटके की कीमत ₹5 से ₹7 कर देते हैं। जो डॉक्टरों द्वारा विटामिन सी अधिक लेने की कहने पर 50 रुपये प्रति किलो का नींबू 150 रुपये प्रति किलो, सब्जीवाले बेचने लगते हैं। नारियल वाला 40-50 रुपए का बिकने वाला नारियल पानी ₹100 का बेचने लगते हैं।
मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी दवा की कमी सुनते ही, ये सब के ऊपर कालाबाज़ारी शुरू कर देते हैं। दम तोड़ते मरीजों की दुर्दशा देखने के बाद निर्दयी होकर रेमडेसीवीर जैसो दवा पे भी कालाबाजारी करनी शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं ऐसे लोग अपना ईमान बेच कर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं।
मारने के बाद भी लोगों के अंदर शैतानी हरकत और बढ़ जाती हैं, मृत शरीर लाने के नाम पर (पानीपत से फरीदाबाद तक के) ₹36000 मांगने लगते हैं। किसी को मरीज को दिल्ली की गाजियाबाद मेरठ नोएडा स्थित किसी हॉस्पिटल में पहुंचाने की बात करते हैं तो एंबुलेंस का किराया 10 से 15 हजार रुपया मांगने लगते हैं।
क्या वास्तव में हम बहुत मासूम हैं.. या लाशों का मांस नोचने वाले गिद्ध
गिद्ध तो मरने के बाद अपना पेट भरने के लिए लाशों को नोचते है पर हम तो अपनी तिजोरियां भरने के लिए जिंदा इंसानों को ही नोच रहे हैं, कहाँ लेकर जाएंगे ऐसी दौलत या फिर किसके लिए ?
कभी सोचा है आपने?? एक बार सोचना जरूर..
एक दिन हिसाब सबको देना पड़ेगा, जनता की अदालत में नहीं तो ईश्वर की अदालत में…