शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता और एकनाथ शिंदे के शपथ ग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज जोरदार बहस देखने को मिली। उद्धव ठाकरे गुट की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जिस तरह से सरकार को गिराया गया था, वह लोकतंत्र का मजाक था। उन्होंने कहा कि अयोग्यता की याचिका लंबित होने के बाद भी शपथ ग्रहण का आयोजन किया गया था। कपिल सिब्बल ने कहा कि शपथग्रहण के लिए याचिका पर फैसला होने तक इंतजार किया जा सकता था, लेकिन यह जल्दी में करा दिया गया। उद्धव गुट की ओर से दलील देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि यदि इस मामले को स्वीकार कर लिया गया तो फिर देश की हर चुनी हुई सरकार बेदखल कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह सरकार गैरकानूनी है और इसे बने रहने का कोई हक नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आज कोई भी आदेश देने से इनकार करते हुए 1 अगस्त को अगली सुनवाई का फैसला लिया है। अदालत ने सभी पक्षों को एक सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल कर जवाब देने को कहा है।
उन्होंने कहा कि यदि इस तरह से राज्य सरकारों को बेदखल किया जाता है तो फिर यह लोकतंत्र पर खतरा है। सिब्बल ने कहा कि अदालत जब तक कोई फैसला नहीं देती, तब तक रुकने की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि जो हो रहा है, वह लोकतांत्रिक संस्थानों का मजाक बनाने जैसा है। वहीं उद्धव ठाकरे का ही पक्ष रखते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि विधायकों की अयोग्यता के मामले पर फैसले के लिए स्पीकर को अधिकार नहीं देना चाहिए। उद्धव ठाकरे गुट की दलीलों पर जवाब देते हुए एकनाथ शिंदे समूह ने कहा कि यह मामला दलबदल जैसा नहीं है। यह तो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का मसला है।
हरीश साल्वे की दलील- यह मामला दलबदल का नहीं, आंतरिक लोकतंत्र का
एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि यह मामला दलबदल का नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि आप किसी और दल में न जाएं और अपने ही नेता पर सवाल उठाएं तो इसमें क्या गलत है। उन्होंने कहा कि दलबदल का कानून तो तब लागू होता है, जब आप किसी और दल के साथ चले जाएं। क्या जिसे 15 से 20 विधायकों का भी समर्थन नहीं है, उसे सत्ता में वापस लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सीएम ने बहुमत खो दिया था। पार्टी के अंदर ही बिना किसी दलबदल के आवाज उठाना गलत नहीं है। पार्टी की सदस्यता चुप्पी की शपथ नहीं है।