लास एंजेल्स – भारतीय मूल की अश्वेत महिला कमला हैरिस राष्ट्रपति चुनाव-2024 जीत सकती हैं, बशर्ते डेमोक्रेट एकजुट हो जाएंऔर उनके एक वर्ग का महिलाओं के प्रति नजरिया बदल जाए। कमला हैरिस का नाम सामने आने के बाद से एशियाई अमेरिकी, अफ्रीकी अमेरिकी और लैटिन अमेरिकी खेमों में खुशी की लहर है। कमला ने भी अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि “नामांकन लूंगी और चुनाव भी जीतूंगी।” अमेरिका की दो बड़ी पार्टियों- रिपब्लिकन और डेमोक्रेट में परंपरावादियों का एक बड़ा समूह है, जो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने में संकोच करता है। डेमोक्रेटिक पुरुषों में एक-डेढ़ दशक से महिलाओं के प्रति नजरिए में तेजी से बदलाव आया है जबकि चर्च से निर्देशित परंपरावादी इवेंजिलिस्ट रिपब्लिकन अपने पुराने ढर्रे से बाहर नहीं आ पा रहे हैं।
अमेरिकी समाज में प्रगतिशील वाम और मध्यमार्गी डेमोक्रेट के पास 53-54 प्रतिशत मत हैं। इनमें अधिकतर निम्न और निम्न मध्यम आय वर्ग की एकल महिलाएं हैं, जो अपने सीमित संसाधनों के कारण मतदान में हिस्सा नहीं ले पातीं। कमला हैरिस ने पिछले चार वर्षों में अथक परिश्रम, एक महिला को छूने वाले मुद्दों में ‘गर्भपात और इमिग्रेशन’ पर काम किया है, उससे महिलाओं के एक बड़े वर्ग में कमला हैरिस के प्रति झुकाव बढ़ा है। चुनाव में अभी मात्र 105 दिन का समय शेष है। कमला हैरिस के सम्मुख पार्टी नियमों के अंतर्गत पहले नामांकन हासिल करना है और उसके बाद चुनाव प्रचार में एक बड़े फंड की ज़रूरत है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के चुनावी फंड में मात्र 910 लाख डालर हैं, जो अमेरिकी चुनाव के लिए अत्यंत अल्प राशि है। हैरिस के दौड़ में आते ही बड़े और छोटे फंड देने वाले आगे आ रहे है। उन्होंने पहले पांच घंटों में खासी रकम जुटाई है।
कमला के सम्मुख इस समय सबसे बड़ा मुद्दा राष्ट्रपति जो बाइडेन के अकस्मात राष्ट्रपति पद की दौड़ में हटने से पैदा हुई परिस्थिति में नामांकन हासिल करने की समस्या है। उनके नामांकन को लेकर पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं में बराक ओबामा, प्रतिनिधि सभा की स्पीकर के रूप में दायित्व निभाने वालीं नैन्सी पेलोसी तथा सीनेट और प्रतिनिधि सभा में पार्टी लीडर और नेता के रूप में दायित्व निभाने वाले चूक शुमर ने रविवार की देर रात तक कमला के प्रति समर्थन व्यक्त नहीं किया है। इसके बावजूद कमला एक दर्जन से अधिक डेमोक्रेट राज्यों और स्विंग स्टेट में समर्थन हासिल कर पद के उम्मीदवारों में सबसे आगे हैं। कमला हैरिस के पक्ष में यह बात भी जाती है कि उन्होंने पिछले चार सालों में अमेरिका के विभिन्न राज्यों में मूल अश्वेत, लैटिन अमेरिकी, एशियाई अमेरिकी, दूर दराज के गांवों में रहने वाले आदिवासी और निर्धन वर्ग के मतदाताओं के साथ साथ पहली बार चुनाव में भाग लेने को आतुर युवक-युवतियाँ को अपने वोट बैंक के रूप में लक्ष्य बनाकर साधा है।
अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव परोक्ष नियमावली से होते हैं, जिसके लिए पार्टियां चुनाव आयोग के सहयोग से विधान के मुताबिक निर्वाचक मंडल का गठन करती हैं। इसके अलावा कांग्रेस के दोनों सदनों में सीनेट के अवकाश प्राप्त करने वाले एक तिहाई और प्रतिनिधि सभा के 435 सदस्यों का चुनाव भी इसी दिन (5 नवंबर) को होता है। इस बार इन चुनावों पर भारत और चीन सहित दुनिया भर की निगाहें लगी हैं। जो बाइडेन ने चुनाव से हटने का फैसला क्यों किया, वह एक अलग चर्चा का विषय है। फ़िलहाल कमला हैरिस उनके स्थान पर नामांकन हासिल कर लेती हैं तो उनका मुकाबला डेमोक्रेट डॉनल्ड ट्रम्प से होगा। और अगर कमला यह चुनाव जीत लेती हैं तो वह अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी। इसके पहले हिलेरी क्लिंटन भाग्य आजमा चुकी हैं, पर उन्हें सफलता नहीं मिली थी।
कमला हैरिस के सम्मुख बड़ी अड़चनों में सबसे पहले नामांकन, पार्टी के राज्य और केंद्र स्तर पर नेताओं और चुनाव प्रचार के लिए एक बड़े फंड के साथ ही जो बाइडेन के अपने 56 प्रतिशत वोट बैंक में एक विश्वास पैदा किए जाने की ज़रूरत है। हांलाकि बाइडेन पहले ही कमला हैरिस का समर्थन कर चुके हैं। भारतीय अमेरिकी, अश्वेत तथा अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी वोट बैंक ऐसा है जो डोनाल्ड ट्रंप के पक्षपाती रवैये से बहुत आहत है। एशियन अमेरिकन एडवांसिंग जस्टिस के एक ताजा सर्वे में कहा गया है कि जो बाइडेन के चार साल पहले 56 प्रतिशत वोट में से मात्र 8 प्रतिशत वोट ही उनसे छिटका है, शेष किसी भी स्थिति में रिपब्लिकन की झोली में नहीं जाएगा। इसी सर्वे में ट्रंप को एशियन अमेरिकी समुदाय के 25 से 31 प्रतिशत मत मिलने की संभावना जताई गई थी। इसमें भारतीय अमेरिकी कुल जनसंख्या का मात्र 1.5 प्रतिशत ही हैं।
एशियन अमेरिकन सबसे तेज बढ़ता हुआ समूह है इसमें 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इनमें से ज्यादातर मतदाता ऐसे हैं जो पहली बार वोट देंगे। इनमें 18 से 34 वर्ष आयु वर्ग के मतदाता एशियन अमेरिकन है, जिनमें से 68 प्रतिशत युवाओं के मतदान करने की बात कही जा र ही है। इस मतदाता वर्ग के सामने मुख्य मुद्दे रोजगार, हेल्थ और मेडिकेयर, मंहगाई और मकानों का बढ़ता किराया है। इन मुद्दों को कमला हैरिस पुरजोर तरीके से उठाती रही हैं, इस कारण भी इस वर्ग में उनके प्रशंसक ज्यादा हैं।
दूसरी तरफ 78 वर्षीय ट्रंप के खिलाफ चार आपराधिक मामलों और करीब 92 अन्यान्य मामलों को लेकर डेमोक्रेट मतदाताओं में भी क्षोभ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से ‘इम्युनिटी’ उपहार मिलने के बाद वह सहज स्थिति में हैं। वह प्रतिद्वंद्वी बाइडेन को ‘स्लीपी’ और कमला हैरिस को निष्क्रिय मानते हैं। ‘अमेरिका ग्रेट अगेन’ के लिए अपनी ट्रेड और व्यापार नीतियों से ‘मेड इन अमेरिका’ जैसे स्लोगन से अमेरिका में चीनी माल के आयात पर अंकुश लगाना चाहते हैं। उन्होंने भारत और चीन में अमेरिकी कंपनियों के लिये आउटसोर्सिंग पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात कहकर एशियाई अमेरिकी मतदाता वर्ग समूह को नाराज किया है। इसका असर भारतीय और चीनी समुदाय पड़ा है। वहीं पड़ोसी देश मैक्सिको और लैटिन अमेरिकी देश इमिग्रेशन पर कड़ी कार्रवाई को लेकर पहले से दुखी हैं। असल में ट्रंप अपने 85 प्रतिशत कंजर्वेटिव (इवेंजिलिस्ट) ईसाई समुदाय वोट बैंक पर निर्भर हैं जबकि अश्वेत, मैक्सिकन और दस से चौदह प्रतिशत एशियाई वोट बैंक बटोर लेते हैं। पिछले एक माह में करीब एक दर्जन पोल सर्वे में कमला हैरिस और ट्रंप अथवा जो बाइडेन के बीच मात्र डेढ़ से दो प्रतिशत अंकों का अंतर दिखाया गया है। कमला हैरिस ट्रंप से आयु में बीस वर्ष कम, अधिक शिक्षित और कैलिफोर्निया की एक सुलझी हुई अटार्नी जनरल होने के नाते इस अंतर को दूर करने में सक्षम है।
कमला हैरिस अपने वरिष्ठ सहयोगी और राष्ट्रपति जो बाइडेन से भले ही उनके लंबे राजनीतिक अनुभव और देश की सामरिक और विदेश नीति में पारंगत होने के फलस्वरूप ज्यादा योग्य और सक्षम हैं। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि जो बाइडेन ही उन्हें अश्वेत, लैटिन अमेरिकी और एशियाई अमेरिकी वोट बैंक को लुभाने के लिए उप राष्ट्रपति बनाकर लाए थे। इसीलिए उन्होंने पद की उम्मीदवारी से हटने के साथ कमला हैरिस को समर्थन दिया है।
भारत और अमेरिका के बीच सामरिक, ट्रेड और व्यापार संबंधी नीतियों का भारतीय अमेरिकी मतदाताओं पर बड़ा बुरा असर पड़ रहा है। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में चीन से बढ़ते आयात और घटते निर्यात की पृष्ठभूमि में दस से बीस प्रतिशत सीमा शुल्क लगाकर चीनी कंपनियों को निरुत्साहित किया था। इससे दोनों देशों के बीच पारस्परिक संबंधों में दरार आ गई थी। इस बार ट्रम्प व्हाइट हाउस में प्रवेश करते हैं और मध्य एशिया में इजराइल के चहेते अमेरिका में अपने धन कुबेर व्यवसाइयों से रिश्ते प्रगाढ़ करते हैं, तो मुमकिन है इजराइल और फिलिस्तीन युद्ध और आगे खिंच जाए। इसी तरह वह खाड़ी में तेल के खेल की राजनीति में सऊदी अरब के वोट बैंक को रिझाने के लिए ईरान, लेबनान और सीरियाई देशों के प्रति कड़ा रुख अपना सकते हैं। अमेरिकी हितों के संरक्षण में चीन और भारत के विरुद्ध ट्रेड और व्यापार के साथ साथ सामरिक नीतियों में बदलाव लाते हैं तो निश्चित रूप से अमेरिका में रहे भारतीय अमेरिकी समुदाय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।