बांग्लादेश: गरीबी से जूझता देश कैसे बना उभरती आर्थिक ताकत

0

बांग्लादेश के 50 साल पूरे हो गए हैं. इस दौरान बांग्लादेश ने भयानक गरीबी और भुखमरी से लेकर आर्थिक विकास की एक बढ़िया मिसाल बनने का सफर तय किया है. ये कैसे हुआ और आगे बांग्लादेश के सामने क्या चुनौतियां हैं, आइए जानते हैं.जब बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में जब पाकिस्तानी सेना ने हथियार डाले, तब दक्षिण एशिया के इस नए आजाद हुए देश की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में थी. देश की 80 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीबी में जी रही थी. फिर अगले कुछ बरसों तक बांग्लादेश सैन्य तख़्तापलट, राजनीतिक संकट, ग़रीबी और अकाल से जूझता रहा. लेकिन, अब जबकि ये अपनी आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है, तब हालात पहले से बहुत बेहतर हो चुके हैं. 16 दिसंबर, 1971 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना ने हार स्वीकार की. इसी दिन की याद में बांग्लादेश में विजय दिवस मनाया जाता है और सरकारी छुट्टी होती है. बांग्लादेश के सेंटर फ़ॉर पॉलिसी डायलॉग में अर्थशास्त्री मुस्तफिजुर रहमान डॉयचे वेले को बताते हैं, “सत्तर के दशक में ये कहा जाता था कि अगर बांग्लादेश का आर्थिक विकास हो सकता है, तो किसी भी देश का आर्थिक विकास हो सकता है” वह बताते हैं कि विकास के मुद्दे पर बांग्लादेश को एक उदाहरण की तरह देखा जाता था, जिस पर सबकी निगाहें थीं. नॉर्वे के सामाजिक शोधकर्ता आरिक जी. यानसन बताते हैं कि करीब 35 साल बाद 2009 में वह बांग्लादेश के एक गांव में दोबारा पहुंचे. तब उन्हें बांग्लादेश के सामाजिक-आर्थिक विकास और लोगों की आय में हुई असाधारण बढ़ोतरी देखकर बड़ी हैरानी हुई. डॉयचे वेले से बातचीत में यानसन कहते हैं, “वहां लोगों की आय दस गुना तक बढ़ गई थी. इसका मतलब था कि वो अपनी दिहाड़ी से कम से कम 10-15 किलो चावल खरीद सकते थे” यानसन 1976 से 1980 के बीच मानिकगंज जिले के एक गांव में कई गरीब परिवारों के साथ रहे थे.

वह बताते हैं, “अगर आपके घर में पांच या छह लोग हैं और आप सिर्फ आधा किलो चावल लेकर घर पहुंचते हैं, तो आप घर के सभी सदस्यों का पेट नहीं भर सकते” यानसन समझाते हैं, “अत्यधिक गरीबी से आशय यह है कि बड़ी तादाद में लोगों को खाना नहीं मिल रहा था. स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था भी न के बराबर थी. कई लोग महज 40 से 50 साल की उम्र के बीच में बीमार पड़ गए या बीमारियों से उनकी मौत हो गई, जबकि पोषण मुहैया कराके उनकी जान बचाई जा सकती थी. कई बच्चों की भी मौत हो गई थी” ये भी पढ़िए: 1971 के युद्ध को बयान करती तस्वीरें वृद्धि और विकास में आगे बढ़ता बांग्लादेश कोरोना वायरस महामारी से पहले बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से फल-फूल रही थी. उसकी सालाना आर्थिक वृद्धि दर आठ फीसदी थी. एशियन डिवेलपमेंट बैंक के मुताबिक महामारी की मार झेलने के बावजूद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है. रहमान बताते हैं, “बांग्लादेश अपनी करीब 16.7 करोड़ की आबादी का पेट भरने लायक अनाज उगाता है. दुनिया के कई देशों से उलट यहां जच्चा-बच्चा मृत्युदर में भी खासी कमी आई है” साल 2015 में बांग्लादेश ने निम्न-मध्यम आय वाले देश का दर्जा हासिल कर लिया था. अब यह संयुक्त राष्ट्र की ‘सबसे कम विकसित देशों’ की सूची से निकलने की राह पर है. आज की तारीख में देशभर के 98 फीसदी बच्चे प्राइमरी शिक्षा हासिल कर चुके हैं और सेकेंड्री स्कूलों में लड़कों की तुलना में लड़कियां ज़्यादा है. पर्यवेक्षक बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में इस मुस्लिम-बहुल राष्ट्र ने लड़कियों और महिलाओं की जिदगियों को बेहतर बनाने में भारी निवेश किया है. बच्चों के कुपोषण और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी इसने प्रगति की है. यानसन बताते हैं कि 2010 में जब वह दोबारा मानिकगंज के उस गांव में गए, तो उन्होंने पाया कि इलाके में स्कूल दोबारा बनाए गए हैं. अब लड़के और लड़कियां, दोनों स्कूल जा रहे हैं.

 

इस तरह वे महिला सशक्तिकरण में योगदान दे रही हैं. रहमान कहते हैं, “कपड़ा उद्योग ने न सिर्फ अर्थव्यवस्था की सूरत, बल्कि देश में महिलाओं की सामाजिक स्थिति को भी बदल दिया है” इस बीच बांग्लादेश का लक्ष्य 2022 तक कपड़ों का निर्यात बढ़ाकर इसे 51 अरब डॉलर तक पहुंचाना है. देश के बाहर से आने वाला पैसा भी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है. साल 2021 में विदेशों में काम करने वाले बांग्लादेशियों ने करीब 24.7 अरब डॉलर बांग्लादेश भेजे हैं. गुणवत्ता और असमानता की चुनौती बांग्लादेश में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि के बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता कमजोर है. रहमान कहते हैं कि इससे कुशल कर्मचारी तैयार करने में बड़ी चुनौती पेश आती है. साथ ही, विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश में हुई शानदार प्रगति और विकास का फायदा हर किसी तक नहीं पहुंचा है. इसके पक्ष में वह आय बढ़ने के बावजूद संपत्ति में असमानता और धीमी गति से नौकरियां पैदा होने की ओर इशारा करते हैं. रहमान कहते हैं, “बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन आय और संपत्ति के बंटवारे को अधिक समान और पारदर्शी बनाया जा सकता है. समाज के ऊपरी पांच फीसदी और निचले 40 फीसदी लोगों के बीच आय का असमानता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है” एक और बड़ी समस्या यह है कि बड़ी आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में ढाका और चटगांव जैसे बड़े शहर ही हैं. इससे शहरों और गांवों के बीच खाई गहरी हो रही है और गांवों में गरीबी बढ़ रही है. रहमान जोर देकर कहते हैं, “गरीबी का स्तर कम होकर 20 फीसदी पर भले आ गया हो, लेकिन कुछ शहरों में तो 50 फीसदी तक लोग गरीबी से जूझ रहे हैं” अपनी आजादी की पचासवीं सालगिरह पर बांग्लादेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करने की है कि आर्थिक समृद्धि और विकास का फल समाज की आखिरी पंक्ति के लोग भी चख सकें..

About Author

Comments are closed.

Maintain by Designwell Infotech