तिब्बत पर कब्जे के बाद से चीन इसका अनमोल खजाना लूटने में जुटा हुआ है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के बीच बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने दुनिया से अपील की है कि क्षेत्र के पर्यावरण पर इसके प्रभाव पर ध्यान दें। दलाई लामा ने यह अपील ऐसे समय पर की है जब दुनियाभर के नेता 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के लिए ग्लासगो, स्कॉटलैंड में एकत्रित हुए हैं।
रेडियो फ्री एशिया के मुताबिक, दलाई लामा ने दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले महाद्वीप के जोखिमों पर जोर दिया और तिब्बत के पर्यावर की भूमिका और वैश्विक जलवायु संकट पर अधिक ध्यान देने की अपील की। आध्यात्मिक गुरु ने कहा, ”कम से कम एशिया में तिब्बत पानी का सबसे बड़ा स्रोत है। सभी बड़ी नदियां, पाकिस्तान की सिंधु नदी, भारत की गंगा और ब्रह्मपुत्र, चीन में येलो नदी, वियतनाम की मेकोंग नदी तिब्बत से बहती है।”
तिब्बत से निर्वासित होने के बाद दशकों से भारत में रह रहे दलाई लामा ने कहा, ”हमें तिब्बत के पर्यावरण को बचाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। यह केवल 60-70 लाख तिब्बतियों नहीं बल्कि क्षेत्र के सभी लोगों के हित में है।” 140 करोड़ चीनी आबादी, 130 करोड़ भारतीय, 17.5 करोड़ दक्षिणपूर्वी एशियाई और पाकिस्तान व बांग्लादेश के करोड़ों लोग तिब्बत से निकलने वाली नदियों के पानी पर निर्भर हैं।
इससे पहले सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 48वें सत्र के दौरान चीन को तिब्बत में अधिकारों के हनन पर फटकार लगाई गई थी। अमेरिका, डेनमार्क, जर्मनी और यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधियों ने तिब्बत में चीनी सरकार की ओर से लगाई गई धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक पाबंदियों की पर चिंता जाहिर की थी। दुनिया भर में राजनीतिक स्वतंत्रता के एक अध्ययन पर आधारित एक ताजा रिपोर्ट में तिब्बत को दुनिया में दूसरा सबसे कम आजाद क्षेत्र बताया गया था।
तिब्बत पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार का शासन है, जिसमें स्थानीय निर्णय लेने की शक्ति भी चीनी पार्टी के अधिकारियों के हाथों में ही है। 1950 में चीन के आक्रमण से पहले तिब्बत एक संप्रभु राज्य था। कब्जे के बाद से प्राकृतिक रूप से बेहद संपन्न तिब्बत को चीन लूटने में जुटा है।