रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मजबूत संबंधों और रूस के खिलाफ प्रतिबंधों पर पश्चिम की आलोचना करने के बावजूद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मॉस्को की मदद के लिए कदम नहीं उठाया है। रेडियो फ्री यूरोप ने बताया कि चीनी नेतृत्व वाले विकास बैंक एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने 3 मार्च को रूस और बेलारूस के साथ सभी कारोबार को निलंबित कर दिया, जो बीजिंग और मॉस्को के संबंधों की सीमाओं को लेकर संकेत है। इसी तरह शंघाई स्थित न्यू डेवलपमेंट बैंक ने भी उसी दिन रूस के साथ कारोबार सस्पेंड कर दिया था।
रविवार को पेपाल, अमेरिकन एक्सप्रेस सहित कई कंपनियों ने यूक्रेन में चल रहे सैन्य अभियान को लेकर रूस और बेलारूस में अपने ऑपरेशन रद्द कर दिए हैं। यह क्रेडिट कार्ड और भुगतान दिग्गज मास्टरकार्ड व वीजा की घोषणा के एक दिन बाद हुआ, जिसके तहत रूस में इनसे सभी लेनदेन पर रोक लगा दी गई। साथ ही रूसी बैंकों की ओर से जारी किए गए उनके कार्ड अब देश के बाहर काम नहीं करेंगे। हालांकि, हाल के वर्षों में रूस और चीन के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं। चीन को रूस के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार में बदलने के लिए द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाया गया है। दोनों देशों ने चीनी युआन में अधिक सौदा करने की मांग की है, जो यूएस-डॉलर फाइनेंशियल सिस्टम से बाहर है।
मजबूत रहे हैं पुतिन और जिनपिंग के आपसी संबंध
मॉस्को और बीजिंग के बीच के मजबूत संबंध 5 फरवरी को हुई बैठक में नजर आए, जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शीतकालीन ओलंपिक के दौरान शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह दो साल से अधिक समय में उनकी पहली आमने-सामने की बैठक थी। एक नए दौर के लिए समन्वय की चीन-रूस व्यापक साझेदारी पर 5 जून 2019 को सहमति बनी, जब शी ने रूस का दौरा किया था। 2013 के बाद से यह उनकी रूस की आठवीं यात्रा थी, जो दो मजबूत लोगों के बीच के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है।
आखिर चीन को किस बात का है डर
भले ही चीन ने यूक्रेन पर पुतिन की कार्रवाई को आक्रमण करार देने से इनकार कर दिया और पश्चिमी नेतृत्व वाले प्रतिबंधों की निंदा की, लेकिन चीनी राज्य के स्वामित्व वाले वित्तीय संस्थान चुपचाप रूस की अर्थव्यवस्था से खुद को दूर कर रहे हैं। यह कदम बीजिंग की ओर से एक सावधानीपूर्वक संतुलित कदम को दिखाता है, क्योंकि यह खुले तौर पर प्रतिबंधों का उल्लंघन किए बिना मॉस्को के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है। दरअसल, चीन को डर है कि प्रमुख पश्चिमी निर्यात बाजारों और अमेरिकी डॉलर-केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली तक इसकी पहुंच को खतरा हो सकता है।