यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से रूसी हथियारों के सबसे बड़े खरीददार भारत की दिक्कतें बढ़ गई हैं, ऐसा जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स ने कहा है। एक्सपर्ट्स ने कहा है कि नई दिल्ली को यह चुनना होगा कि लंबे वक्त तक रूस से हथियारों का आयात किया जाए या नहीं और इसके साथ ही इस बात पर खासा ध्यान देना होगा कि मामले को लेकर सबसे बेहतर विकल्प क्या है।
बढ़ सकती है भारत की सिरदर्दी
वॉर ऑन द रॉक्स के लिए वसबजीत बनर्जी और बेंजामिन त्काच ने एक रिपोर्ट लिखी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस के रक्षा उद्योग में चीन की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए भारत की सिरदर्दी बढ़ सकती है। ऐसे हालात में भारत अपने हथियारों की खरीद में विविधता लाना शुरू कर सकता है। इसके साथ ही भारत घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी करना शुरू करेगा और अपने स्वदेशी रक्षा उद्योग को विक्सित करने की राह पर आगे बढ़ेगा।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद मॉस्को को हथियारों की सप्लाई पूरा करने में दिक्कतें आई। वारसॉ पैक्ट देश जब नाटो में शामिल हो गए तो इससे रूस को और नुकसान पहुंचा। इसके बाद बदले हालात को देखते हुए भारत ने आयात में विविधता और देशी हथियारों के विकास पर फोकस बढ़ा गया। लेकिन मौजूदा वक्त में जहां भारत रक्षा निर्यात के लिए रूस का टॉप ग्राहक बना हुआ है, वहीं रूस रक्षा आयात के लिए चीन का सबसे बड़ा स्रोत भी बन गया है।
जब रूस ने किया क्रीमिया पर कब्जा
2014 के बाद रूसी हथियार खरीदने वाले देशों को भी प्रतिबंधों की धमकी दी गई जिसके कारण मॉस्को की दिक्कतें और बढ़ गई। ऐसे में रूस ने भारत के साथ रुपया-रूबल व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जो अब स्विफ्ट प्रतिबंधों को बायपास करने में मदद करेगा।
पिछले कुछ सालों में रूसी इक्विपमेंट्स की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे हैं। यूक्रेन में रूसी सैन्य विफलताओं का कोई साफ कारण नहीं है लेकिन मजबूत यूक्रेनी प्रतिरोध, सीमित रूसी कमान और नियंत्रण, रूसी रसद विफलता आदि प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। युद्ध से पहले ऐसा कहा गया कि रूस को कीव पर नियंत्रण करने में बहुत वक्त नहीं लगेगा लेकिन ऐसा नहीं होता हुआ है।