रूस से ईंधन लिए बिना कितनी दूर तक चलेगी यूरोप की गाड़ी? जानें तेल का पूरा हिसाब-किताब

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बीते दिनों यूरोपीय संघ के कार्यकारी आयोग ने छह महीने में रूसी तेल के आयात को खत्म करने की योजना का प्रस्ताव पेश किया है। यूरोप का मकसद रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना है। मगर सवाल ये उठता है कि रूसी ईंधन के बगैर यूरोप कितने दिन तक काम चला पाएगा साथ ही इसका रूस की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पडेगा..

दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यूरोप में रूस के कच्चे तेल का सबसे अधिक निर्यात होता है। बीपी स्टैटिस्टिकल रीव्यू ऑफ द वर्ल्ड एनर्जी के मुताबिक, 2020 में रूस के 26 करोड़ टन कच्चे तेल के निर्यात में से 13.8 करोड़ टन यानी 53 फीसदी यूरोप में आया था। यूरोप में जितने कच्चा तेल का उपयोग होता है, सब आयात किया जाता है। इस आयातित कच्चे तेल में एक चौथाई अकेले रूस से आता है।

अमेरिका, अफ्रीका से तेल खरीदने का विकल्प

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, यूरोपीय संघ ने युद्ध से पहले 22 लाख बैरल प्रति दिन (बीपीडी) कच्चे तेल और 12 लाख बैरल प्रति दिन रिफाइंड तेल उत्पादों का आयात करता था। यूरोपीय देशों के पास रूस की जगह अमेरिका और अफ्रीका से तेल खरीदने का विकल्प मौजूद है। हालांकि यूरोप इसे मध्यपूर्वी देशों से भी खरीद सकता है। फिलहाल अभी तक मध्यपूर्व के तेलों का निर्यात प्रमुख रूप से एशिया में होता है। लेकिन वर्तमान में चल रही व्यवस्था को अचानक बदलने से यूरोपीय देशों को मुश्किल पैदा हो जाएगा।

जर्मनी ,पोलैंड और नीदरलैंड सबसे बड़े आयातक

स्टैटिस्टा के रिपोर्ट के मुताबिक, उत्पाद मूल्य के आधार पर जर्मनी यूरोपीय संघ के भीतर रूसी तेल का सबसे बड़ा आयातक है। 2021 में, जर्मनी ने से 2360 करोड अमेरिकी डॉलर मूल्य के कच्चे तेल, गैसोलीन और डीजल का आयात किया। इसके बाद पोलैंड ,नीदरलैंड,फिनलैंड ,बेल्जियम, ब्रिटेन ,लिथुआनिया और अन्य देश हैं।

85 करोड़ रुपये प्रतिदिन देता है यूरोप

रूसी बजट का प्रमुख स्तंभ ऊर्जा है। रूसी सरकार को 2011 से 2020 के बीच अपनी आय का 43 फीसदी तेल और प्राकृतिक गैस से मिला। युद्ध का विरोध करने के बावजूद रूसी तेल और गैस का यूरोपीय देशों में आपूर् जारी है।

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