यूक्रेन की सीमाओं पर रूस की सेना की तैनाती के चलते लगातार पूर्वी यूरोप में तनाव की स्थिति बनी हुई है। रूस ने अपने सवा लाख सैनिकों की तैनाती को लेकर कहा है कि उसने अब उन्हें वापस बुलाना शुरू कर दिया है, लेकिन अमेरिका और नाटो देश इस बात पर भरोसा नहीं जता रहे हैं। ऐसे में यूक्रेन में लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है। रूस के बाद क्षेत्रफल की दृष्टि से यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है और उसका किसी भी पाले में जाना उस पक्ष को मजबूत करेगा। ऐसे में यूक्रेन बेहद अहम है और आने वाले दिनों में वैश्विक राजनीति के परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है। खासतौर पर रूस के लिए यूक्रेन बेहद अहम हो गया है। रूस आने वाले दिनों में महाशक्ति बनेगा या फिर महज एक देश ही रह जाएगा। इसका फैसला यूक्रेन विवाद करने की ताकत रखता है।
नाटो में शामिल करने की कोशिश भी विवाद की वजह
सोवियत संघ का हिस्सा रहे लिथुआनिया, लाटविया समेत रूस के कई पड़ोसी देशों को अमेरिका ने नाटो में शामिल कर लिया है। इसे रूस की घेरेबंदी के तौर पर देखा जाता है। इन देशों में पोलैंड, नॉर्वे, एस्टोनिया भी शामिल हैं। अब अमेरिका की नजर यूक्रेन को नाटो में शामिल करने पर है। इसी पर रूस को आपत्ति है और वह किसी भी तरह के युद्ध को टालने के लिए अमेरिका से यह गारंटी चाहता है कि वह यूक्रेन को नाटो में शामिल न करे। पिछले दिनों व्लादिमीर पुतिन ने सोवियत संघ के विघटन को दुखद करार दिया था। उनकी महत्वाकांक्षा यूक्रेन को रूस में शामिल करने की है। यदि ऐसा होता है तो रूस एक महाशक्ति के तौर पर उभरेगा, जो शीत युद्ध से पहले हुआ करता था। यदि यूक्रेन नाटो में जाता है तो फिर रूस के लिए बड़ा झटका होगा।
रूस की स्थिति क्यों है मजबूत
यूक्रेन को दो हिस्सों पश्चिम और पूर्व में बांटकर देखा जाता रहा है। इसमें पूर्वी यूक्रेन पर रूस का बड़ा प्रभाव है और उसकी भाषा को समझने वाले लोगों की बड़ी संख्या है। यहां रूसी मूल के लोग अकसर यूक्रेन के खिलाफ विद्रोह करते रहे हैं। यही वजह है कि एक तरफ रूस की सेना यूक्रेन की सीमा पर डटी हैं तो वहीं अंदर से भी वह मजबूत है। ऐसे में यूक्रेन को रूस से अलग कर पाना पश्चिमी देशों के लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा यूक्रेन की आर्थिक स्थिति भी कमजोर है, जिसे रूस और कमजोर करने की कोशिश में जुटा है।
चीन इस विवाद में क्यों दे रहा रूस का साथ
अमेरिका ने पिछले दिनों इस मसले को लेकर चीन पर भी निशाना साधा था। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हाल ही में चीन के दौरे पर भी गए थे। दरअसल दोनों देशों के बीच बीते कई सालों में संबंध काफी मजबूत हुए हैं और कारोबार भी तेजी से बढ़े हैं। रूस अपने सामान का बड़ी मात्रा में यूरोपीय देशों को निर्यात करता है। यदि युद्ध होने की स्थिति में यूरोपीय देश उस पर बैन लगाते हैं तो फिर चीन के साथ वह कारोबार को बढ़ाकर इसकी भरपाई कर सकता है। यही वजह है कि चीन लगातार रूस के पाले में खड़ा नजर आ रहा है। इसके अलावा अमेरिका से दोनों देशों के मतभेद भी साथ आने की एक बड़ी वजह हैं