महिलाओं पर अनगिनत जुल्म औऱ तुगलकी फरमान के लिए तालिबान हमेशा से ही विश्व भर में कुख्यात रहा है। बंदूक की नोंक पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद भी आतंकी संगठन का चेहरा फिर पूरी दुनिया के सामने है। तालिबान के कब्जे के बाद कई मुल्क अफगानियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस बीच तालिबान ने काबुल यूनिवर्सिटी में लड़कियों की एंट्री पर बैन लगा दिया है। तालिबान ने हाल ही में नए चांसलर को नियुक्त किया है। नए चांसलर ने अपनी नियुक्ति के बाद ऐलान किया है कि जब तक यूनिवर्सिटी में इस्लामिक माहौल नहीं तैयार हो जाता तब तक वहां छात्राओं और महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहेगा।
नए चांसलर मोहम्मद अशरफ घैरात के एक ट्वीट का हवाला देते हुए बताया है कि नए चांसलर ने ट्वीट कर कहा है, ‘ जब तक इस्लामिक माहौल नहीं बनता किसी भी महिला को क्लास करने या काम करने के लिए काबुल यूनिवर्सिटी आने की इजाजत नहीं है।’ साल 1990 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था तब उस वक्त महिलाओं को बिना किसी पुरूष रिश्तेदार के सार्वजनिक जगहों पर निकलने की भी मनाही थी। ऐसा नहीं करने पर उनकी पिटाई भी की जाती थी।
‘New York Times’ से बातचीत के दौरान एक महिला लेक्चरर ने कहा, ‘ इस पवित्र स्थान पर कुछ भी गैर इस्लामिक नहीं होता है। अध्यक्ष, शिक्षक, इंजीनियर और यहां तक कि मुल्ला भी प्रशिक्षित होते हैं।’ उन्होंने कहा कि काबुल यूनिवर्सिटी अफगानिस्तान राष्ट्र का घर है। हाल ही में तालिबान ने पीएचडी डिग्री धारक वाइस चांसलर को हटा कर बीए की डिग्री रखने वाले मोहम्मद अशरफ घैरात को यहां का वाइस चांसलर बनाया था। तालिबान के इस फैसले के बाद काबुल विश्वविद्यालय के करीब 70 शिक्षकों और प्रोफेसरों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
मोहम्मद अशरफ की नियुक्ति का सोशल मीडिया पर भी विरोध किया गया था और तालिबान की काफी आलोचना हुई थी। सोशल मीडिया यूजर्स घैरात के उस कदम की भी याद दिला रहे थे जब उन्होंने एक पत्रकार की हत्या को सही ठहराने की कोशिश की थी। इससे पहले तालिबान ने अफगान के पूर्व राष्ट्रपति बरहनुद्दीन रब्बानी के नाम से रखे गये एक विश्वविद्यालय का नाम बदकर काबुल एजुकेशन यूनिवर्सिटी कर दिया था।